बिहार में तेजस्वी के चक्रव्यूह को भेदने में जुटे मोदी

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कोरोना जैसी भयंकर महामारी के बीच बिहार के 16 जिले की 71 सीटों पर बुधवार को 54.2 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले। इसे किसी मायने में कम नहीं कहा जा सकता। क्योंकि सामान्य हालात में जब 2015 में विधानसभा के चुनाव हुए थे तब 54.9 फीसदी वोट पड़े थे। और 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले दौर में 53.5 फीसदी वोट ही डाले गए थे। वोटिंग के इस उत्साह के लिए बिहार के ऊर्जावान और राजनीतिक रूप से जागरूक मतदाताओं को जितनी बधाई दी जाए कम है। इस बीच पहले दौर की वोटिंग में कौन आगे रहा और कौन पीछे रह गया और वोटिंग के अगले दो दौर में क्या होगा? इसका आकलन जरूरी हो जाता है। क्यंकि महागठंबंधन और एनडीए दोनों ने ही पहले दौर की वोटिंग के बाद 71 में से 55 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि बिहार में वोटर जो बोलते हैं, और आखिरी समय में जो करते हैं, उनमें कई बार आसमान जमीन का अंतर होता है। लिहाजा इसका अंदाजा लोगों की बोली में अंतर्निहित भावों को समझकर और पढ़कर ही लगाया जा सकता है।

बिहार के इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी बात ये है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीतने वाली आरजेडी(RJD) यानी तेजस्वी यादव (Tejashvi Yadav) आज मोदी (Modi) के बरक्स चुनाव मैदान में खड़े हैं और उन्हें ललकारते हुए दिखाई दे रहे हैं। आखिर पिछले चार हफ्ते में तेजस्वी ने वो कौन सा करिश्मा कर दिखाया है कि जो राजनीतिक विश्लेषक पहले बिहार के चुनाव को एकतरफा यानी एनडीए के पक्ष में बता रहे थे, वही आज तेजस्वी को लंबी रेस का घोड़ा बताने लगे हैं। लिहाजा सत्ताधारी दल एनडीए समेत बिहार में लड़ रहे तीसरे और चौथे गठबंधन उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव जैसे लोगों को भी अपनी रणनीति में अच्छा खासा बदलाव करना पड़ रहा है, ताकि तेजस्वी के बिहार के विकास के बुनियादी मुद्दों और एक कलम से 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने के वादे का माकूल जवाब दिया जा सके।
सबसे हैरानी की बात ये है कि तेजस्वी के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद मैदान में उतरना पड़ा है। जबकि कम से कम दो दर्जन हेलीकॉप्टरों के साथ मोदी कैबिनेट के बिहारी और गैर बिहारी बड़े कद के नेता और योगी समेत कई सूबे के मुख्यमंत्री पहले से ही तेजस्वी के खिलाफ हवा बनाने में लगे थे। उनके खिलाफ तलवार भांज रहे थे। इस लड़ाई में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार(Nitish Kumar) की हालत सबसे पतली और खस्ताहाल नजर आ रही है। पहले जहां वो विकास की बात करते थे, वहीं अब नीतीश लालू यादव परिवार पर बेहद निजी और पारिवारिक हमले बोल रहे हैं, जिन्हें बिहार के समाज में कहीं से स्वीकृति नहीं मिलती है। नीतीश की इस हताशा को बीजेपी ने भी भांप लिया है और वो बीच चुनाव में उनसे दूरी बनाने लगी है, ताकि चुनाव नतीजों के बाद नए विकल्पों का रास्ता खुला रहे।

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पहले चरण की वोटिंग के दिन का विज्ञापन (28 अक्तूबर)

बिहार में बीजेपी अब जेडीयू या कह लीजिए नीतीश कुमार से किस तरह कन्नी काट रही है इसका अंदाजा सबसे पहले मिला 25 अक्तूबर यानी रविवार को। पहले चरण के चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने बिहार के अखबारों के पहले पन्ने पर जो विज्ञापन दिया उसमें सिर्फ और सिर्फ मोदी नजर आए। एक तो विज्ञापन से नीतीश के चेहरे को गायब कर दिया गया दूसरे जो स्लोगन था, ‘भरोसा है।‘ ये भरोसा मोदीजी का ही था। कई अखबारों के पहले पन्ने पर छपे इस विज्ञापन से बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया और नीतीश की खूब किरकिरी हुई। हालांकि चुनाव के दिन जेडीयू ने इसकी भरपाई की कोशिश की। और पहले चरण की वोटिंग के दिन यानी 28 अक्तूबर को बराबर साइज का विज्ञापन पहले पन्ने पर दिया। जिनमें मोदी के साथ नीतीश का चेहरा भी प्रमुखता से नजर आया। वैसे अगर आप पटना की सड़कों पर घूमेंगे तो पूरा शहर मोदीजी के बड़े-बड़े होर्डिंग से पटा है। जिनमें नीतीश गायब है और बिहारियों के लिए वायदों की झड़ी लगाते मोदीजी ही नजर आ रहे हैं। मानो वो प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़कर बिहार का मुख्यमंत्री बनने जा रहे हों।


दरअसल बीजेपी(BJP) को आज नीतीश पर भरोसा नहीं रह गया है या नीतीश ने बीजेपी का भरोसा खो दिया है। तभी प्रधानमंत्री मोदी मंच से रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि तो अर्पित करते हैं लेकिन एलजेपी या चिराग पासवान के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलते। जबकि चिराग पासवान रोजाना नीतीश को भ्रष्टाचारी, चोर तक बोलते हैं। उन्हें कई घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए जेल भेजने की धमकी देते हैं। और तो और मुंगेर गोलीकांड के बाद तो चिराग ने उन्हें जनरल डायर की संज्ञा से भी विभूषित कर डाला है। तो क्या ये माना जाए कि बीजेपी ही नीतीश को कमजोर करने में लगी है और बिहार में अपना भविष्य चिराग पासवान के साथ देख रही है? ये सवाल आज बिहार के राजनीतिक गलियारे में पूछा जा रहा है।

नीतीश के खिलाफ जिस तरह का गुस्सा और गोलबंदी बिहार के चौक-चौराहों पर आज दिखाई दे रहा है वो वोट के दिन भी नजर आएगा, इसके बारे में फिलहाल ठोस ढंग से कुछ भी कह पाना बेमानी होगा। क्योंकि अगर लोग तमाम गुस्से के बाद भी जाति के आधार पर वोट करेंगे तो नीतीश को उतना नुकसान नहीं होगा, जितने का आकलन फिलहाल राजनीतिक पंडित कर रहे हैं। दरअसल अपने वजूद को बचाने की कोशिश कर रहे नीतीश को अब असली मुकाबला बीजेपी से ही करना पड़ रही है। ऐसी चर्चा है कि नीतीश के सफाए के लिए बीजेपी दूसरे और तीसरे चरण में अपने वोटरों को एलजेपी में शिफ्ट करा सकती है। और जमीनी स्तर पर इसके संकेत भी साफतौर पर दिखने लगे हैं।

मसलन, आपको आज बिहार में नीतीश से नाराज बहुत से वोटर ये कहते मिल जाएंगे कि हम मोदीजी को वोट देंगे। जब आप कहेंगे इस सीट पर तो जेडीयू के उम्मीदवार खड़े हैं तो झट से बोलेंगे, ‘चूंकि मोदीजी को बिहार में जिताना है इसीलिए तीर के निशान पर बटन दबाएंगे।‘ यानी संदेश साफ है कि मोदीजी कहेंगे कि चिराग पासवान को वोट देना है तो वो नीतीश की जगह एलजेपी को भी वोट डाल सकते हैं।

गौररतलब है कि एलजेपी ने उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जहां जेडीयू के उम्मीदवार हैं। उन्होंने बीजेपी के खिलाफ कोई उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं। चिराग खुलेआम खुद को मोदी का अंधभक्त और हनुमान बता रहे हैं तो इसके पीछे की रणनीति को समझना बहुत जरूरी है। और अगर इनसे भी बात नहीं बनती है बिहार में तीसरे और चौथे गठबंधन की पार्टियां भी हैं जिन्हें बीजेपी के साथ जाने से कोई गुरेज नहीं होगा।

संजय कुमार
संजय कुमार 1998 से अबतक टीवीआई, आजतक, इंडिया टीवी, राज्यसभा टीवी से जुड़े रहे हैं। बीते दो साल से स्वराज एक्सप्रेस न्यूज चैनल के कार्यकारी संपादक हैं।

लिहाजा बिहार में अगर कोई बदलाव होना है तो तेजस्वी की सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ का वोट में कनवर्ट होना जरूरी है। तेजस्वी ने कल की एकतरफा लड़ाई को कांटें की टक्कर में तो बदल दिया है लेकिन अगले दो चरणों में उन्हें और मेहनत करने की जरूरत है। उनके महागठबंधन के दूसरे सहयोगियों कांग्रेस औप वामदलों को अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी। इस मामले में वामदलों का प्रदर्शन अबतक काबिलेतारीफ रहा है। वहीं 70 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस के प्रचार में वो धार नहीं है जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही है। ले-देकर राहुल गांधी की चार सभाओं को छोड़ दें तो वो लकीर पीटते ही दिखाई दे रहे हैं। प्रियंका गांधी ने तो अबतक बिहार से दूरी ही बनाकर रखी है। बिहार के बाकी कांग्रेसी नेताओं में ऐसा कोई करिशमाई चेहरा नहीं है जो तेजस्वी को मदद कर सके। उल्टे वो जीत के लिए वामदलों और तेजस्वी की ओर ही टकटकी लगाकर देख रहे हैं।

इस बीच मोदी मीडिया और गोदी मीडिया ने मोर्चा संभाल लिया है। फिर से लव जेहाद, पाकिस्तान, पुलवामा, बालाकोट, लद्दाख जैसे भावनात्मक मसलों पर दिनभर खबरें परोसकर बीजेपी के पक्ष में विमर्श तैयार करने में वो जी-जान से जुटे हैं। क्योंकि बिहार में नौकरी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन, कमरतोड़ महंगाई और उद्योग-धंधों के सवाल पर एनडीए बुरी तरह से घिरी हुई है। और तेजस्वी के बनाए इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए छटपटा रही है। इसी का नतीजा है कि बिहार में जीत के बाद फ्री कोरोना वैक्सीन बांटने के सवाल पर चौतरफा घिरने के बाद मोदीजी को खुद सामने आकर कहना पड़ा है, ‘जब कोरोना का वैक्सीन आएगा तो सबको मिलेगा। इससे कोई अछूता नहीं रहेगा।

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