कहा जाता है की सिनेमा समाज का दर्पण होता है, समाज को दिशा देता है कि कैसे आप समाज में सामाजिक मुल्यो के साथ श्रेणिबध प्रक्रिया में सन:सन: समाज को गति दें। पर अफसोस कि आज की सबसे बड़ी फिल्म कंपनी सिनेमा के माध्यम से समाज के सभी वर्गों के आस्था व सम्मान को विचलित करने का काम किया है।
हिंदी फिल्म ‘आदि पुरुष’ ने इस शाब्दिक अर्थ को ही बदल के रख दिया, खान अभिनीत फिल्म आदिपुरुष फिल्म शुक्रवार को पटना के रेजेंट हॉल में देखा फिल्म देखके मन भिन्ना गया, फिल्म के लेखक को अभी बहुत सीखने की ज़रूरत है उन्हे भारतीय इतिहास और भारतीय भाषा का ज़रा सा भी जानकारी नही है, भाषा विज्ञान के हिसाब से ये फिल्म जिस येरा में बनाया गया है वो भगवान श्री राम का युग था और उस समय संस्कृत से मिलता जुलता हिंदी बोली जाती थी पर अफसोस की फिल्म में मुंबईया या दिल्ली के छपड़ी भाषा का इस्तेमाल किया गया है। फिल्म रामायण की महाकाव्य कहानी को दिखाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, “आदि” का अर्थ “मूल” या “प्रथम” और “पुरुष” का अर्थ “आदमी” या “व्यक्ति” है। इसलिए, “आदिपुरुष” का अर्थ “मूल पुरुष” या “प्रथम पुरुष” है। भगवान राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और माना जाता है कि वे पहले इंसान थे जिन्होंने धार्मिकता, सच्चाई और गुणों को अपनाया। अपने शुद्धतम रूप में करुणा व मोहितमय वाणी से संसार को सुदृढ़ करने का काम किया पर अफसोस की इस तरह की घटिया फिल्म भगवान राम की छवि खराब करने का काम कर रही है, सारांश ये है की भारतीय सिनेमा के लेखक निर्देशक अंग्रेज़ी डब्बा के दूध पीकर फिल्म इंडस्ट्री को भी डब्बा बना रहे हैं, फिल्म के दूसरे पक्ष की बात करे तो प्रभाष ने राम की छवि को धूमिल कर दिया है वही दूसरे तरफ सैफ अली खाँ मिस कास्ट है, हनुमान के रूप में सनी सिंह को हास्य अभिनय के संबंध में कुछ भी पता नही उन्हे अभी अभिनय सीखने की ज़रूरत है, कृति सेनन को सिर्फ खाना पूर्ति के लिए रक्खा गया है उन्हे और लेखक, निर्देशक को सीता यानी जानकी के चरित्र के संबंध में कुछ भी पता नही है, कैमरा और स्पेशल इफेक्ट दर्शकों को कुछ हद तक अच्छा लगा होगा, कुल मिलाकर आदिपुरुष एक घटिया फिल्म है जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति के साथ खिलवाड करने का काम किया है।
आलोचक: इरफान जामियावाला
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