पिता के साथ हलीम बेचा, चौराहे पर झूठे बर्तन धोए और PCS-J में 135वीं रैंक हासिल की, मोहम्मद कासिम की कहानी बेहद प्रेरणा दायक है

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उत्तर प्रदेश/संभल(मुजम्मिल दानिश): इंसान के जीवन में कोई मुश्किल ऐसी नहीं जो आसान न हो सके। इंसान को घबराना नहीं चाहिए, हौसला और हिम्मत से काम लेना चाहिए। जब कोई इंसान ईमानदारी के साथ मेहनत करता है तो ईश्वर उसकी मंज़िल उसके क़दमों में लाकर डाल देता है। ये बातें सिर्फ लिखने की नहीं हैं इनको सच साबित कर दिखाया है सम्भल के नौजवान मो. क़ासिम ने PCS-J में 35वीं रैंक लाकर।

उत्तर प्रदेश के जनपद संभल में रूकरुद्दीन सराय के रहने वाले वली मोहम्मद के पुत्र मोहम्मद कासिम(Mohammed Qasim) ने बताया कि जब में काम करता था तो ऐसा नही था कि मैं सिर्फ काम ही करता था, मैं सुबह 6 बजे से शाम के 4 बजे तक काम करता था। फिर 6 बजे तक ट्यूशन पढ़कर वापिस आता था। सुबह में काम पर जाने से पहले पढ़ाई करता था फिर काम से निपटने के बाद रात को पढ़ाई करता था। मेरी पढ़ाई दिन में नही हुई है क्योंकि दिन में काम करता था। मैने 2012 तक हलीम का ठेला लगाया है।

माँ ने किया मोटिवेट

मोहम्मद क़ासिम ने बताया कि मेरी मां ने मुझे बहुत मोटिवेट किया कि तुम्हे पढ़ना चाहिए और पढ़कर तुम बहुत कुछ कर सकते हो। जोइनिंग होने के बाद मेरा पहला काम यही होगा मैं ज्यादा से ज्यादा इंसाफ करूँ और जो पेंडिंग हो उसको पूरा करूँ। क्योंकि इंसान की आखिरी उम्मीद कोर्ट ही होती है। मेरा खुद का भी मानना है कि आप सेलेब्रिटीज़ कई चीज़ों से बन सकते हैं, या तो आप किसी पोलोटिशियन के बेटे हों या खुद सेलेब्रिटीज़ के बेटे हों, या फिर पढ़ाई में कुछ हासिल करें। लोग अक्सर अच्छा मुकाम हासिल करके एक सेलेब्रिटीज़ की तरह ही महसूस करते हैं। ये मैंने आज खुद देख लिया जिस तरह मेरे गांव के लोगो ने मेरा स्वागत किया। पढ़ाई लिखाई करके समाज में आप एक हीरो का रोल अदा के सकते हैं।

मेरी सबसे पहले शिक्षा प्राथमिक विद्यालय से हासिल की जहां में पहली क्लास में था और पांचवीं क्लास की किताब पढ़ लिया करता था। मैं हिंदी पढ़ना जानता था पर इंग्लिश नही जानता था। किसी तरह में इंग्लिश सेनटेन्स बनाना सीखा। मैं 7वीं क्लास से जेड यू इंटर कॉलेज चला गया वहां मुझे काफी मिन्नत के बाद एडमिशन ले लिया गया। मैं अब्बा के साथ चला जाता था प्लेटें धोने जब मैं प्लेटें धोने से बेचना सीख गया तो मैंने अपना ठेला लगाना शुरू कर दिया। मैं इसी तरह 2012 तक अपना काम करता रहा। मैं 10वीं में 2008 में फेल भी हो गया था पर 2009 में मैंने हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली थी।

मुझे नहीं पता था कि इतना आगे जाऊंगा

क़ासिम ने बताया कि जब मैंने इंटर दाखिला लिया तो मुझे ये नही पता था कि मुझे इतनी आगे तक जाना है। मैंने अपने क्लास की होनहार लड़कियों को पढ़ता देख प्रेरणा हासिल की क्योंकि हम क्लास में हमेशा बैक बेंचर की तरह थे। हम पढ़ाई पर इतना फोकस नही करते थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुझसे फॉर्म भी नही भरा जा रहा था किसी तरह एक मेरे साथी हैं अज़ीम उन्होंने मेरी मदद की। तो फिर मेरा पोलिटिकल सांइस बी ए में एएमयू(AMU) में दाखिला हो गया। वहाँ जाकर देखा तो इंग्लिश का माहौल था पूरा और मैं हिंदी मीडियम से वहां गया था। मेरी तो वहां बुरी हालत हो गई थी। वहां के प्रोफेसर वसीम हुसैन साहब ने मेरी मदद की तो मैं इंग्लिश सीखा तो इस तरह मैने बी ए एल एल बी किया। फिर उसके बाद मैंने देखा जो एएमयू से पढ़कर दिल्ली यूनिवर्सिटी में जाते थे तो जज बन जाते थे। तो दिमाग मे ये बात घर कर गई अगर जज बनना है तो डी यू में दाखिला लिया जाए। तो मैंने वहां पर एलएलएम में दाखिला लिया और लगातार तैयारियां करता रहा। औऱ मेंस के एग्जाम में मुझे निराशा हाथ लगी और उम्मीद हार बैठा था फिर मुझे घर वालो ने समझाया। क्योंकि हम आर्थिक स्थिति से मजबूत नही हैं। फिर मेने दोबारा ट्राई किया तो तब जाकर मेरा मेंस व प्री दोनों हो गए, फिर बारी इंटरव्यू की तो मैंने 14 दिन पहले तैयारियां शुरू कर दी क्योंकि मुझे बोलना आता है क्योंकि जब भी मैं इंटरव्यू के लिए जाता हूँ तो मेरा बोलने की बजह से सेलेक्शन हो जाता है। जोइनिंग होने के बाद मेरा पहला काम यही होगा मैं ज्यादा से ज्यादा इंसाफ करूँ और जो पेंडिंग हो उसको पूरा करूँ। क्योंकि इंसान की आखिरी उम्मीद कोर्ट ही होती है।

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