रामपुर/साजिद खान: कबूतर को अमन का परिंदा कहा जाता है। इस अमन के परिंदे को पालने वाले शौकीन लोगों की रामपुर में कमी नहीं है।
रामपुर में कबूतर पालने वाले काफी लोग हैं जो इस अमन के परिंदे को पालते हैं, इसकी सेवा करते हैं। उसके बाद कबूतर उड़ान को लेकर रामपुर में बड़े-बड़े टूर्नामेंट भी कराए जाते हैं और जीतने वाले विजेता को ट्रॉफी देकर सम्मानित भी किया जाता है।
अगर हम बात करें रियासत कालीन यानी राजा महाराजाओं के दौर की तो उस वक्त इस अमन के परिंदे को संदेश इधर से उधर पहुंचाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि ना तो उस वक़्त लेटर की सुविधा थी ना ही टेलीफोन हुआ करते थे। संदेश इधर से उधर पहुंचाने के लिए कबूतर ही माध्यम हुआ करता था।
इस अमन के परिंदे कबूतर के जरिए ही एक जगह से दूसरी जगह राजा महाराजा संदेश भेजा करते थे।
आज कबूतर को रामपुर में काफी लोग पालने का भी काम कर रहे हैं। इनकी सेवा ऐसे कर रहे जैसे अपने बच्चे की सेवा करते हैं, जैसे अपने बच्चे को खाना पीना खिलाते वैसे ही इन कबूतरों को भी काजू, बदाम, चिलगोजा खिलाते हैं और बीमार पड़ने पर कबूतर को डॉक्टर के भी ले जाते हैं।
बहरहाल रामपुर में अमन का परिंदा कबूतर को काफी लोग पालने का काम कर रहे हैं और इन कबूतरों की उड़ान को लेकर आए दिन प्रतियोगिताएं भी होती रहती है।
कबूतर बाज हाजी अब्दुल अलीम ने बताया, “हम कबूतर पालन करते हैं हमें कबूतरों का शौक है हम इसलिए पालते हैं हम इन्हें अपना परिवार की तरह रखते हैं दाना खिलाते हैं और इनकी देखभाल करते हैं, अगर कोई बीमारी होती है तो डॉक्टर को लाकर हम इनको दवाई भी खिलाते हैं जैसे मैं अपने बच्चे पालता हूं वैसे इन्हें भी पालता हूं, जो भी खर्च मैं करता हूं और उसी में इन्हीं का भी खर्च करता हूं हम जो खर्च करते हैं और उड़ान के टाइम हम इनको बदाम है, मुनक्के हैं चिलगोजा है गोली बनाकर हम इन्हें खिलाते हैं क्योंकि आसमान में कुछ देर रुके रहे और सबसे बड़ी बात यह है जो यह कबूतर है हम इन्हें पालते हैं और इनके नसीब से हमें भी मिलता रहेगा और हमारे परिवार को भी मिलता है और कबूतरों की हम जितने भी सेवा करते हैं यह सोचकर करते हैं क्या पता हमें इनके नसीब से मिल रहा हो, हमारे बच्चों को इनके नसीब से मिल रहा हो और इसी हिसाब से हम इनकी देखभाल करते हैं और चारा खिलाते हैं।
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